Tuesday, October 14, 2008

क्या भारत का "चन्द्रायन अभियान" अमेरिका के दावों की पोल खोल पाएगा?




आज 22 अक्टूबर, 2008 को जब मैंने बड़ी उत्सुकता से टीवी खोला तो बड़ा निराश हुआ. मैं यह मान कर चल रहा था कि आज की सबसे बड़ी घटना को समाचार चैनल बार बार दिखा रहें होंगे. अच्छी खासी टी आर पी बटोरी जा रही होगी. मेरा अनुमान था कि आज चैनलों में बाकी समाचारों पर एक ग्रहण सा लग जाएगा. राज ठाकरे की गिरफ्तारी वाले समाचार से भी लोगों का ध्यान हट जाएगा. लोग भी दूसरे समाचारों में कोई दिलचस्पी नहीं लेंगे. आख़िर घटना भी तो कोई साधारण नही है. बार बार लोग तरह तरह के सवाल टी वी चैनलों के माध्यम से पूछ रहे होंगे. पूरा भारत दिवाली मना रहा होगा. दर्शकों की उत्सुक्ताओं को विशेषज्ञों द्वारा संतुष्ट किया जा रहा होगा. विदेशों के चैनलों की प्रतिक्रियाओं को बार बार दिखाया जा रहा होगा. इतनी बड़ी घटना का कवरेज़ भी विस्तृत ही होना चाहिए. इसके विपरीत ऐसा कुछ नहीं हुआ. मेरा अनुमान एकदम निराधार निकला. मैं स्तब्ध रहा गया. विश्व की अत्यंत असाधारण घटना का इतना साधारण कवरेज़ ? इतने बड़े समाचार के स्थान पर जो कुछ मुझे देखने को मिला वो था -"अमीर खान की बॉडी सलमान तथा शाहरूख से बेहतर है...राज ठाकरे को अदालत में पेश किया जाना है...बिग-बॉस में शोले डोले बन गई है...बगैरह बगैरह....

यह क्या चंद्रयान का सफलता पूर्वक प्रेक्षण इतनी साधारण घटना हो सकती हैभारतीय आम आदमी आज भी इतना ही अज्ञानी और निरक्षर है जितना कि 100 वर्ष पूर्व ? भारतीय मीडिया भी इस घटना की गहराई से अनजान है? यह सोचकर आश्चर्य होता है कि भारत का चंद्रयान अभियान लोगों की नज़रों में इतनी साधारण घटना हो सकती है. क्या लोग ये मानते हैं कि चाँद पर जाना अत्यन्त ही साधारण बात है ? लोगों/मीडिया को इस बात का एहसास है कि चाँद पर जाना अभी मुश्किल ही नही बल्कि असंभव है? क्या लोग इस बात को समझते हैं कि अमेरिका का चाँद अभियान अभी तक विवादों के घेरे में है-अर्थात वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि अमेरिका द्वारा चाँद पर लिए गए चित्र नकली हैं. क्या हमें इस बात का एहसास है कि भारत का चन्द्रायण मिशन अमेरिका दे दावों की पोल खोल सकता है

भारत 'चंद्रायण-मिशन' को लेकर बड़ा ही उत्साहित है. इन दिनों भारतीय तथा विश्व-स्तरीय पत्र-पत्रिकायों में इस मिशन की खूब चर्चा है. होगी भी क्यों नहीं, आख़िर भारत अमेरिका के बाद विश्व का दूसरा देश है जिसने चाँद पर आदमी उतारने की बात कही है. वैसे तो चंद्रमा के कक्ष में प्रवेश करने वालों की सूची में भारत का छठा स्थान है लेकिन चाँद पर मनुष्य भेजने का दावा करने वाला दूसरा देश है.चीन ने भी निकट भविष्य में चंद्रयात्रा की तैयारी शुरू कर दी है. पूरे विश्व के वैज्ञानिकों में चंद्रायण की सफलता को लेकर कई प्रकार की आशंकाएं हैं. नासा की पूरी नज़रें भारत की और हैं. आम जनता के लिए चाहे यह एक सामान्य बात हो परन्तु आज भी बहुत से भौतिक-विज्ञानी चंद्र-यात्रा को असंभव मानते हैं. यद्यपि भारत का प्रयास केवल यान को चंद्रमा तक ले जाना है मानव को चाँद पर उतारने का प्रयास अभी भारत ने प्रारंभ नहीं किया है. मनुष्य को चंद्रमा पर उतारना एक अत्यन्त जटिल कार्य है यदि यह कहा जाए कि मानव का चाँद पर जाना अभी मानवता के लिए संभव नही हो पाया है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. अमेरिका के चंद्र मिशन की बात अभी भी वैज्ञानिकों के गले नही उतर रही है. भौतिक शास्त्र का विद्यार्थी होने के नाते आज भी बहुत सारे सवाल मन में उठते हैं जिनका जवाब शायद नासा के पास भी नही है. नासा बहुत से प्रश्नों आगे निरुत्तर है. क्या वास्तव में अमेरिका के वैज्ञानिकों ने चंद्र यात्रा की थी? क्या वास्तव में नील आर्मस्ट्रांग तथा एल्ड्रीन बज चाँद पर उतरे थे? क्या अमेरिका इस सच्चाई को विश्व के सामने कभी रखने का साहस कर पायेगा कि वह कभी भी मानव को चाँद पर उतार नही पाया? आख़िर अमेरिका के लिए चन्द्र यात्रा की असफलता को जाहिर करना इतना कठिन क्यों है ? 1969 से लेकर 1972 तक की मानव द्वारा की गई चंद्र यात्राएं क्या वास्तव में अमेरिका की सबसे बड़ी झूठ है ? आख़िर अमेरिका को इतना बड़ा सच छुपाने की आवश्यकता क्यों पड़ी ? उक्त प्रश्नों पर विचार करने से पूर्व हमें सबसे पहले चंद्रयात्रा करने से संबंधित तकनीकी जटिलतायों का समझने की आवश्यकता है

इस प्रश्न पर भी विचार करने की आवश्यकता है कि अंतरिक्ष यात्रा तथा चंद्रयात्रा में बहुत बड़ा अंतर है. आम व्यक्ति चंद्रयात्रा तथा अंतरिक्ष यात्रा को एक ही प्रकार की यात्रा मानता है जबकि दोनों यात्रायों में जमीन आसमान का अंतर है. अंतरिक्ष यात्रा में अंतरिक्ष-यान को केवल कुछेक सीमित किलोमीटर तक पृथ्वी की कक्षा में प्रविष्ट कराया जाता है वहीं चंद्रयात्रा करने के लिए 5-लाख किलोमीटर की यात्रा करते हुए यान को कई जटिल प्रक्रियायों से गुजारना पङता है. सर्व प्रथम अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की कक्षा में प्रविष्ट कराना होता है. ये एक इतना जटिल तथा जोखिम भरा कार्य होता है कि अक्सर कड़ी मेहनत तथा पूरी तैयारी के बावजूद भी अत्यन्त तीव्र गति वाला यान पृथ्वी के विपरीत घर्षण को झेल नहीं पाता है तथा रास्ते में ही धवस्त हो जाता है. कई बार तो उड़ान भरने के साथ ही भस्म हो जाता है. अंतरिक्ष यात्रा से सम्बंधित घटनायों की काफी लम्बी सूची है. लोंचिंग-पेड पर ही अक्सर यान को आग के बड़े गोले में तब्दील होते देखा गया है. लोंचिंग प्रक्रिया तकनीकी तौर पर अत्यन्त मुश्किल/जटिल तथा जोखिम भरी प्रक्रिया है, गुरुत्वाकर्षण बल के विपरीत एस्केप वेलोसिटी की तीव्र गति से जब यान को अत्यन्त उच्च बल से ऊपर की और धकेला जाता है तो प्रायः यान इस गति को या तो झेल नही पाता है या फिर पृथ्वी के विपरीत पैदा हुए घर्षण से तप कर धवस्त हो जाता है

चंद्र यात्रा के लिए तो छह बार लोंचिंग-पेड की आवश्यकता पड़ती है:-

1. पृथ्वी से लोंच करके कक्षा में स्थापित कराना.
2. यदि यान सफलता पूर्वक पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हो जाता है तो पुनः एक बार वहां से लोंच कर चाँद की कक्षा में प्रविष्ट कराना होता है. चाँद की और बढ़ने का अर्थ है लगभग पाँच लाख किलोमीटर की यात्रा.
3.जब पृथ्वी पर समस्त सुविधायों और वैज्ञानिकों की गहन देखरेख के बावजूद भी लौन्चिंग-पेड पर यान ध्वस्त हो जाता है तब सोचिये कि अंतरिक्ष से सीमित सुविधायों एवं कम वैज्ञानिको के रहते इस प्रकार की लोंचिंग कितनी जोखिम भरी हो सकती है
4. यदि पृथ्वी की कक्षा से लोंचिंग सफल हो जाती है हो इसके बाद सबसे बड़ा कार्य यान को चाँद की कक्षा में प्रविष्ट कराने का रहा जाता है.
5. यदि यान लगभग 5-लाख किलोमीटर की यात्रा के पश्चात (लगभग 9-दिन की यात्रा) सफलता पूर्वक कक्षा में प्रवेश कर जाता है तो इसका अगला कदम चाँद के धरातल पर यान का एक हिस्सा उतारना रह जाता है-अर्थात एक भाग चाँद के धरातल पर उतरेगा तथा दूसरा हिस्सा चाँद की कक्षा में रहता हुया चाँद की परिक्रमा करता रहेगा-अगर कहा जाए कि यह कार्य 1969 (अमेरिका के चंद्र मिशन का काल) में लगभग असम्भव ही रहा होगा तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. .
6. अब यान को चाँद के धरातल की और लोंच किया जाता है-अर्थात अत्यंत जटिल एवं निहायत ही मुश्किल प्रक्रिया का दौर प्रारंभ होता है -अगर कहा जाए कि यह कार्य 1969 में (अमेरिका के चंद्र मिशन का काल) लगभग असम्भव ही रहा होगा तो अतिश्योक्ति नहीं होगी
7. चाँद पर उतरने के पश्चात पुनः चाँद से लांचिंग-पेड की सहायता से चाँद की कक्षा में प्रविष्ट कराने का कार्य प्रारंभ हो जाता है. यह यान इस प्रकार से लोंच किया जायेगा कि चाँद की कक्षा में स्थापित भाग से इसे पुनः जोड़ा जा सके-अर्थात परिक्रमा करते हुए भाग की स्थिति तथा लोंच किए गए भाग का समय इस प्रकार हो कि दोनों भागों का पुनर्मिलन हो सके
8. अब शुरू होता है चाँद की कक्षा से पुनः धरती की कक्षा में प्रविष्ट होने का दौर-अर्थात -लाख किलोमीटर की यात्रा 
9. पृथ्वी की कक्षा में प्रविष्ट होने के पश्चात् अब पुनः इसे धरती की और लोंच किया जायेगा.
10. इसके पश्चात् चंद्र यात्रा के दौर का अंत हो जाता है. यह तो रही यान को चाँद तक पहुंचाने की प्रक्रिया

अब हम विचार करते हैं इसके कुछ अन्य पहलुओं पर:-

वर्तमान युग की उपलब्धियों को देखते हुए माना जा सकता है की आज विज्ञान ने चाँद को ही नहीं बल्कि मंगल की धरा का भी स्पर्श किया है. परन्तु यहाँ तक मनुष्य को चाँद पर उतारने का प्रश्न है मैं इस बात से आज भी सहमत नही हो पा रहा हूँ. मैं 1969-1972 की मानव द्वारा की गई चन्द्र-यात्रायों पर यकीन नही कर पा रहा हूँ. चलिए इस सिलसिले में कुछेक महत्वपूर्ण बिन्दुयों पर चर्चा करते हैं. मुझे पूर्ण विश्वास है कि इन बिन्दुयों से गुजरने के पश्चात आप भी मेरी बातों से अवश्य सहमत हो जायेंगे.
1. पृथ्वी के ऊपर 400 मील से 4000 मील तथा भूमध्य रेखा के ऊपर चारों तरफ़ 9000 मील से 15000 मील तक पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में कैद आवेशित कणों की वेन-एलेन नामक विकिरणों से युक्त ऐसा क्षेत्र है जिसमें से गुजरना कोई आसान काम नहीं है. कोई भी प्राणी इसे छू भर ले तो जल कर राख हो जायेगा. नासा द्वारा चंद्र-यात्रियों के लिए बनाया अंतरिक्ष सूट तथा मुंह और सर को ढकने के लिए बनाए गए आच्छादन इन विकिरणों को झेलने में कतई सक्षम नही हैं. 2. 1969 से 1972 तक का काल वर्तमान युग की तरह अत्याधुनिक कंप्यूटर तथा अन्य तकनीकी साधनों की सक्षमता के परिपूर्ण नहीं था. उस युग के क्या आज के समय के साधन भी मानव को चंद्रमा पर उतारने में सक्षम नही है
3. यदि वास्तव में मानव ने चंद्रमा पर कदम रखा ही था तो क्यों नही रूस जैसे अन्य देशों में चाँद पर जाने की होड़ लग गई? क्यों स्वयं अमेरिका ही इसके बाद चाँद पर आदमी भेज पाया? जब रूस ने अंतरिक्ष में अपना आदमी भेज कर पूरी दुनिया में वाहवाही लूटी तो उसका निकटतम प्रतिद्वंदी अमेरिका यह बर्दास्त नहीं कर पाया और आननफानन में उसने चाँद पर मानव भेजने की घोषणा कर दी. और उसके बाद शुरू हुआ एक अदम्य प्रयासों की श्रृंखला. परन्तु लगातार प्रयास विफल होते गए
क्या अमेरिका चन्द्र अभियान की असफलता को झेल नही पा रहा था? लगातार चंद्रयात्रा के विफल होते प्रयास के कारण दुनिया को दिखाने के लिए यह कदम उठाया गया ? क्या अमेरिका ने शर्मिंदगी से बचने के लिए यह कदम उठाया ? क्या अमेरिका ने रूस को उसकी प्रथम अंतरिक्ष यात्रा का मुंह तोड़ जबाव देने के लिए एक फ़िल्म की शूटिंग की तरह एरिजोना के मरुस्थल पर चाँद का वातावरण बना कर कुछेक दृश्य फिल्माकर लोंगो को भ्रमित किया

चलिए अब हम कुछ अमेरिकी चन्द्र-यात्रा के कुछ महत्वपूर्ण चित्रों पर दृष्टिपात करें :-

1. उपर्युक्त चित्र में एल्ड्रीन तथा नील-आर्मस्ट्रांग को चाँद पर ध्वजा लगाते दिखाया गया है. नासा द्बारा जारी वीडियो क्लिप में इस झंडे को लहराते दिखाया गया है. जब चाँद पर हवा के झोंके ही नही हैं तो ध्वजा लहरेगी कैसे
2. इसी चित्र में दोनों व्यक्तियों की छाया दो विपरीत दिशाओं में दिखाई गई हैं. जब चाँद पर चमकने वाले वाले सूर्य की की रोशनी एक ही दिशा में छाया पैदा करती है तो ये कैसे सम्भव हुआ? ज़ाहिर है शूटिंग के दौरान दो भिन्न भिन्न प्रकार के प्रकाश स्रोत काम में लाये गएँ हैं
3.चित्र संख्या-"दो" में चाँद का वातावरण अंधकारमय दिखाया गया है जबकि चाँद के आस पास वायुमंडल होने की वजह से दिन में भी तारे देखे जा सकते हैं. हबल की दूरबीन से भी यह वातावरण देखा जा सकता है.
4. फिल्मों के निर्माता इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि किसी भी दृश्य की शूटिंग के दौरान दृश्य के मध्य भाग को "C" द्वारा अंकित कर दिया जाता है. आश्चर्य है कि चित्र संख्या तीन में चाँद के धरातल पर "C" कहाँ से गया है ? क्या चाँद पर कोई एलियन रहते हैं जिन्हें अंग्रेजी भाषा की भी जानकारी है
5. चाँद पर रखे जाने वाले पाँव और चाँद पर अंकित पाँव के निशान में कोई समानता नहीं हैं. अर्थात दोनों के माप अलग अलग हैं. यह बात स्वतः ही स्पष्ट हो जाती है कि नील आर्मस्ट्रांग ने पाँव बाद में रखा था और निशान पहले से ही तैयार किए गए थे. पाँव के निशान बनाने के पीछे यह दर्शाना था कि चूंकि चाँद पर हवाएं नही चलती हैं अतः मिटटी पर बने हुए निशान स्थायी तोर पर अंकित हो जाते हैं. इसी प्रकार अन्य 50 चित्रों में आसानी से इन विसंगतियों को भांपा जा सकता है

अब देखना है कि भारत के चन्द्रायन अभियान से इन गुथियों को सुलझाने में कितनी सहायता मिलती है. भारत का ये अभियान चौंकाने वाला हो सकता है. अमेरिका सहित कई देशों के नज़र इस समय भारत के इस चन्द्रायन अभियान पर टिकी हुई है. पाठक चाहें तो इस सम्बन्ध में अपनी भ्रांतियों के समाधान हेतु लिख सकते हैं. यथासंभव तथा यथाशीघ्र इन प्रश्नों के जबाव देने का प्रयास रहेगा. यदि आपके पास भी कोई सुझाव हो तो अवश्य लिखें.      
हर्षमोहन कृष्णात्रेय