मीडिया योन-घटनायों का दुष्प्रचार करता है
8 जुलाई, 2008 को लगभग सभी भारतीय समाचार पत्रों ने एक समाचार को बहुत अहमियत दी गई. समाचार पत्रों में एक मोहल्ले में एक विवाहित युगल तथा कुछ अल्प व्यसक लड़कों के बीच थूकने को लेकर हुए आपसी झगड़े का ज़िक्र किया गया था। पुलिस के हस्तक्षेप ने इस घटना को और भी जटिल कर दिया। विवाहित युगल ने लड़कों के खिलाफ मारपीट, छेड़छाड़ और बलात्कार का मामला दर्ज करा दिया। पुलिस ने मेडिकल रिपोर्ट के द्वारा शिकायत की पुष्टि होने तक लड़कों को पुलिस कस्टडी में डाल दिया। आस पास के इलाकों में कई प्रकार की कहानियाँ सुनने को मिलने लगी. इससे पहले कि जाँच एजंसियां किसी निष्कर्ष पर पहुंचे समाचार पत्रों ने सुर्खियों में छाप दिया "एक गर्भवती महिला के साथ छह युवकों द्वारा बलात्कार" खैर, बाद में मेडिकल रिपोर्ट नकारात्मक आई. परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी. मीडिया अपनी गैर ज़िम्मेदारी निभा चुका था.
एक नई आकांक्षी अभिनेत्री प्रीति जैन ने सुपरिचित राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फ़िल्म निर्देशक मधुर भंडारकर पर बलात्कार का आरोप लगा दिया. इस सिलसिले में जांच एजेंसियों को न तो मेडिकल स्तर पर कुछ मिला और न ही अन्य कोई ऐसा सबूत मिला जो बलात्कार की पुष्टि करता हो. नतीजतन न केवल अदालत का बहुमूल्य समय बरबाद हुआ बल्कि आरोपी के केरियर पर बदनुमा दाग लग चुका था. अधैर्यशील मीडिया अपनी सुपरिचित जिम्मेदारी बहुत पहले ही निभा चुका था. मीडिया को सबूतों अथवा परिस्थितियों की सत्यता से भला क्या वास्ता? उसे तो एक सनसनीखेज सेक्सी ख़बर से वास्ता था चाहे वो झूठी ही क्यों न हो.
कुछ दिन पूर्व किसी स्तरीय अंग्रेजी पत्र की पूरक पत्रिका में कुछ बहुचर्चित अभिनेत्रियों के लगभग नग्न चित्र इस शीर्षक के साथ प्रकाशित हुए-"कवर पेज ऑफ़ सर्टेन मैगजींस सच एज -'प्ले बॉय" (cover page of certain magazines” such as “Play Boy)। ("प्ले बुयाय" जैसी पत्रिका के चुनिन्दा मुख पृष्ट)
"पब्लिक स्थानों का दुरुपयोग" अथवा "नैतिक मूल्यों का पतन" आदि शीर्षक के बहाने प्रेमी युगलों के परिणय- मुद्रा के चित्र जहाँ कहीं पत्रिकायों में दिखाई दे सकते हैं। मुंबई के बैंड स्टैंड का एक सुपरिचित वो दृश्य जिसमें प्रेमी युगलों को एक कतार में परिणय मुद्रा में दिखाया गया है- बार बार किसी न किसी रोचक शीर्षक की आड़ में पत्र-पत्रिकायों में दिखाई देता रहेगा. नववर्ष के अवसर पर मुंबई के जुहू-बीच पर महिलायों के साथ कुछ शरारती युवकों द्वारा छेड़छाड़ करने के दृश्य ने मीडिया जगत के संग्रालय में बहुत बड़ी पहचान बना ली है और कई बार समाचार पत्रों में बड़े ही गौरवशाली अंदाज से पेश किया जा रहा है।
बलात्कार की खबरें समाचार पत्रों में सर्वोपरि स्थान पर सुशोभित करने/ छापने या लगातार टी वी चैनलों में प्रसारित करने को मीडिया जगत अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानता है। इस तरह की ख़बरों का उद्देश्य किसी पीड़ित की मनो-व्यथा अथवा पीड़ा को प्रकट करने के बजाय संवेदनशील एवं आकर्षक शब्दों की अभिव्यक्ति के द्वारा मिर्च मसालों का मुलम्मा चढा कर घटना से पूर्णतया अनभिज्ञ जनता का घटना की ओर ध्यान भर आकर्षित कराना होता है। यदि किसी मॉडल का दुर्घटनावश टॉप खिसक जाता है तो सारा मीडिया जगत घडियाली आंसू बहाते हुए भारतीय संस्कृति एवं नैतिक मूल्यों के ह्रास की दुहाई देते हुए बार बार वही दृश्य अनजान जनता को दिखा कर अपना अदृश्य उल्लू सीधा करता प्रतीत होता है मानों ये समाचार आत्मा हत्या करते भूमि-पुत्रों की रोजी-रोटी की परेशानियों से ज़्यादा अहम् है। दूसरी और औरत की इज्ज़त की परवाह करने का ढोंग करने वाला ये मीडिया जितना नुकशान किसी महिला को पहुंचाता है उतना नुकशान किसी घटना से नहीं हुआ होता है। अर्थात दुर्घटना की शिकार महिला को अक्सर दोहरी मार झेलनी पड़ती है. लैंगिक शोषण की घटनायों के द्वारा दर्शकों को आकर्षित करने की कला से मीडिया भलीभांति परिचित है. मीडिया इस बात के मनोवैज्ञानिक पहलू से सुपरिचित है कि लैंगिक-शोषण की खबरें भारतीय समाज में सर्वाधिक बिकती है.
एम् एम् एस जैसी प्रक्रिया को जब आम जनता जानती नहीं थी तब किसी मासूम के अश्लील एम् एम् एस द्वारा हुए नुकशान को मीडिया ने इस प्रकार प्रसारित और प्रचारित किया कि आम जनता भी इस एम् एम् एस कि विधि से परिचित हो गई. अर्थात मीडिया का उद्देश्य किसी मासूम के चरित्र के साथ हुए छेड़छाड़ की और ध्यान दिलाना नही था बल्कि उस महिला के अश्लील फोटो के प्रति ध्यान मात्र आकर्षित करना भर ही था. एम् एम् एस से अनजान जनता को अश्लील चित्र देखने के प्रति जिज्ञासा बढ़ाने जैसे नेक कार्य करने वाले मीडिया को कोटी कोटी साधुवाद. एम् एम् एस युक्त सेल-फोन की बिक्री बढ़ाने वाले मीडिया ने जो सामाजिक दायित्व निभाया है उसके लिए आने वाली पीढी अवश्य आभारी होगी.
'पाठकों की समस्यायें' अथवा "सेक्स समस्यायों का समाधान' जैसे कालम के माध्यम से पत्र-पत्रिकाएं ने जो पाठक बटोरे हैं, उनकी संख्या बता पाना असम्भव है. पत्र-पत्रिकायों में अक्सर ऐसे कालमों में समाधान बताने वाले कई बार न तो औपचारिक तौर पे शिक्षित विशेषज्ञ होते न और न ही उन्हें ऐसे विषयों से सम्बंधित जानकारी का कोई खासा अनुभव प्राप्त होता है. इस तरह के कालमों को द्वितीय श्रेणी के लेंगिक-समाचार का दर्जा दिया जा सकता है. मीडिया 'सेक्स-सम्बन्धी शिक्षा' के बहाने अच्छा खास पाठक-वर्ग जुटा रहा है.
यह एक विडम्बना ही है कि एड्स जैसे गंभीर विषय पर जानकारी देते समय मीडिया बहुत ही संजीदगी से पेश आत्ता है. ऐसे विषय की जानकारी देते समय मीडिया बहुत एहतियात बरतता है बहुत ही अप्रत्यक्ष भाषा का प्रयोग करता है तथा एड्स के विज्ञापनों में भी अत्यन्त परोक्ष शैली का प्रयोग करता है-मानों उसे समाज एवं भारतीय परिवारों की सीमायों का बखूबी एहसास है. वहीं लेंगिक-शोषण की कहानी का इतना चीडफाड़ करता है कि देखने वाला भी शर्मशार हो जाए.
मीडिया के संग्रहालय में संरक्षित चुनिन्दा चित्र जो समय समय पर पाठकों के सामने आते रहेंगे:-
१. १९३३ की फ़िल्म कर्म का देविका रानी का हिमांशु राय के साथ चिरपरिचित चुम्बन दृश्य जिसने भारतीय फिल्मों में चुम्बन दृश्यों की नींव डालीं.
२. मेरा नाम जोकर में रूसी अभिनेत्री क..राम्बियांकिना के साथ राज कपूर का चुम्बन दृश्य.
३.१९८० के दशक की फिल्मों में तो मानों चुम्बन दृश्यों की बाढ़ सी आ गई हो.
४.शाही स्वागत के दौरान पद्मिनी कोल्हापुरे का राजकुमार चार्ल्स को चूमने के दृश्य ने भारतीय समाज में हाय तौबा मचा दी थी.
५.पाकिस्तानी हाई कमिश्नर असरफ जहाँगीर की पुत्री को बयोवृध वरिष्ट पत्रकार खुशवंत सिंह द्वारा पोती की हैसियत से चूमने के दृश्य ने पुरे भारतीय महाद्वीप में तूफ़ान मचा के रख दिया था.
६. शबाना आज़मी द्वारा नेल्सन मंडेला को आजादी का चुम्बन देने के दृश्य को मीडिया ने इस तरह से पेश किया कि इस ख़बर ने भारतीय जनमानस को काफी झकझोर कर रख दिया था.
७.करिश्मा कपूर तथा आमिर खान का फ़िल्म राजा हिन्दुस्तानी का चुम्बन दृश्य (१९९६)
८.मल्लिका शेरावत तथा इमरान हाशमी के सीरियल चुम्बन दृष्य (२००४)
९.मिका का राखी सावंत को चूमना.
१०. रिचर्ड गेरे का शिल्पा शेट्टी का दोस्ताना अंदाज में चूमना
११. किरण मजुमदार तथा वसुंधरा राजे का अप्रत्याशित चुमबन
निम्नलिखित मुद्दों/विषयों की आड़ में मीडिया बहुधा अप्रत्यक्ष तौर पर पाठकों को रिझाता रहा है:-
१ वात्स्यायन की कामसूत्र सम्बन्धी पुस्तक की प्राचीनता और साहित्यकता की विवेचना करके
२. औरतों की सेक्स सम्बन्धी भ्रांतियों को दर्शाता बहुचर्चित अंग्रेजी नाटक "वेजिना मोनोलोग" की समीक्षा की आड़ में.
३. नजदीकी रिश्तेदारियों में होने वाले लेंगिक सम्बन्ध की समस्यायों की चर्चा की आड़ लेकर.
४, चित्रकारी में नग्नता सम्बन्धी विषय पर चर्चा करके
५. किशोरावस्था एवं योंन परिवर्तन जैसे विषय पर प्रकाश डालकर
६. इन्टरनेट के दुरुपयोग विषय पर लिखकर
७.स्तनपान एवं कैंसर पर प्रकाश डालकर
८. सम लैंगिक संबंधों की आड़ में
९. समाज में फैलती वेश्यावृति
१०.विवाहोपरांत होने वाले संबंधों से सम्बंधित विषयों पर लेखन
११.गे-सम्बन्ध
एक नई आकांक्षी अभिनेत्री प्रीति जैन ने सुपरिचित राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फ़िल्म निर्देशक मधुर भंडारकर पर बलात्कार का आरोप लगा दिया. इस सिलसिले में जांच एजेंसियों को न तो मेडिकल स्तर पर कुछ मिला और न ही अन्य कोई ऐसा सबूत मिला जो बलात्कार की पुष्टि करता हो. नतीजतन न केवल अदालत का बहुमूल्य समय बरबाद हुआ बल्कि आरोपी के केरियर पर बदनुमा दाग लग चुका था. अधैर्यशील मीडिया अपनी सुपरिचित जिम्मेदारी बहुत पहले ही निभा चुका था. मीडिया को सबूतों अथवा परिस्थितियों की सत्यता से भला क्या वास्ता? उसे तो एक सनसनीखेज सेक्सी ख़बर से वास्ता था चाहे वो झूठी ही क्यों न हो.
कुछ दिन पूर्व किसी स्तरीय अंग्रेजी पत्र की पूरक पत्रिका में कुछ बहुचर्चित अभिनेत्रियों के लगभग नग्न चित्र इस शीर्षक के साथ प्रकाशित हुए-"कवर पेज ऑफ़ सर्टेन मैगजींस सच एज -'प्ले बॉय" (cover page of certain magazines” such as “Play Boy)। ("प्ले बुयाय" जैसी पत्रिका के चुनिन्दा मुख पृष्ट)
"पब्लिक स्थानों का दुरुपयोग" अथवा "नैतिक मूल्यों का पतन" आदि शीर्षक के बहाने प्रेमी युगलों के परिणय- मुद्रा के चित्र जहाँ कहीं पत्रिकायों में दिखाई दे सकते हैं। मुंबई के बैंड स्टैंड का एक सुपरिचित वो दृश्य जिसमें प्रेमी युगलों को एक कतार में परिणय मुद्रा में दिखाया गया है- बार बार किसी न किसी रोचक शीर्षक की आड़ में पत्र-पत्रिकायों में दिखाई देता रहेगा. नववर्ष के अवसर पर मुंबई के जुहू-बीच पर महिलायों के साथ कुछ शरारती युवकों द्वारा छेड़छाड़ करने के दृश्य ने मीडिया जगत के संग्रालय में बहुत बड़ी पहचान बना ली है और कई बार समाचार पत्रों में बड़े ही गौरवशाली अंदाज से पेश किया जा रहा है।
बलात्कार की खबरें समाचार पत्रों में सर्वोपरि स्थान पर सुशोभित करने/ छापने या लगातार टी वी चैनलों में प्रसारित करने को मीडिया जगत अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानता है। इस तरह की ख़बरों का उद्देश्य किसी पीड़ित की मनो-व्यथा अथवा पीड़ा को प्रकट करने के बजाय संवेदनशील एवं आकर्षक शब्दों की अभिव्यक्ति के द्वारा मिर्च मसालों का मुलम्मा चढा कर घटना से पूर्णतया अनभिज्ञ जनता का घटना की ओर ध्यान भर आकर्षित कराना होता है। यदि किसी मॉडल का दुर्घटनावश टॉप खिसक जाता है तो सारा मीडिया जगत घडियाली आंसू बहाते हुए भारतीय संस्कृति एवं नैतिक मूल्यों के ह्रास की दुहाई देते हुए बार बार वही दृश्य अनजान जनता को दिखा कर अपना अदृश्य उल्लू सीधा करता प्रतीत होता है मानों ये समाचार आत्मा हत्या करते भूमि-पुत्रों की रोजी-रोटी की परेशानियों से ज़्यादा अहम् है। दूसरी और औरत की इज्ज़त की परवाह करने का ढोंग करने वाला ये मीडिया जितना नुकशान किसी महिला को पहुंचाता है उतना नुकशान किसी घटना से नहीं हुआ होता है। अर्थात दुर्घटना की शिकार महिला को अक्सर दोहरी मार झेलनी पड़ती है. लैंगिक शोषण की घटनायों के द्वारा दर्शकों को आकर्षित करने की कला से मीडिया भलीभांति परिचित है. मीडिया इस बात के मनोवैज्ञानिक पहलू से सुपरिचित है कि लैंगिक-शोषण की खबरें भारतीय समाज में सर्वाधिक बिकती है.
एम् एम् एस जैसी प्रक्रिया को जब आम जनता जानती नहीं थी तब किसी मासूम के अश्लील एम् एम् एस द्वारा हुए नुकशान को मीडिया ने इस प्रकार प्रसारित और प्रचारित किया कि आम जनता भी इस एम् एम् एस कि विधि से परिचित हो गई. अर्थात मीडिया का उद्देश्य किसी मासूम के चरित्र के साथ हुए छेड़छाड़ की और ध्यान दिलाना नही था बल्कि उस महिला के अश्लील फोटो के प्रति ध्यान मात्र आकर्षित करना भर ही था. एम् एम् एस से अनजान जनता को अश्लील चित्र देखने के प्रति जिज्ञासा बढ़ाने जैसे नेक कार्य करने वाले मीडिया को कोटी कोटी साधुवाद. एम् एम् एस युक्त सेल-फोन की बिक्री बढ़ाने वाले मीडिया ने जो सामाजिक दायित्व निभाया है उसके लिए आने वाली पीढी अवश्य आभारी होगी.
'पाठकों की समस्यायें' अथवा "सेक्स समस्यायों का समाधान' जैसे कालम के माध्यम से पत्र-पत्रिकाएं ने जो पाठक बटोरे हैं, उनकी संख्या बता पाना असम्भव है. पत्र-पत्रिकायों में अक्सर ऐसे कालमों में समाधान बताने वाले कई बार न तो औपचारिक तौर पे शिक्षित विशेषज्ञ होते न और न ही उन्हें ऐसे विषयों से सम्बंधित जानकारी का कोई खासा अनुभव प्राप्त होता है. इस तरह के कालमों को द्वितीय श्रेणी के लेंगिक-समाचार का दर्जा दिया जा सकता है. मीडिया 'सेक्स-सम्बन्धी शिक्षा' के बहाने अच्छा खास पाठक-वर्ग जुटा रहा है.
यह एक विडम्बना ही है कि एड्स जैसे गंभीर विषय पर जानकारी देते समय मीडिया बहुत ही संजीदगी से पेश आत्ता है. ऐसे विषय की जानकारी देते समय मीडिया बहुत एहतियात बरतता है बहुत ही अप्रत्यक्ष भाषा का प्रयोग करता है तथा एड्स के विज्ञापनों में भी अत्यन्त परोक्ष शैली का प्रयोग करता है-मानों उसे समाज एवं भारतीय परिवारों की सीमायों का बखूबी एहसास है. वहीं लेंगिक-शोषण की कहानी का इतना चीडफाड़ करता है कि देखने वाला भी शर्मशार हो जाए.
मीडिया के संग्रहालय में संरक्षित चुनिन्दा चित्र जो समय समय पर पाठकों के सामने आते रहेंगे:-
१. १९३३ की फ़िल्म कर्म का देविका रानी का हिमांशु राय के साथ चिरपरिचित चुम्बन दृश्य जिसने भारतीय फिल्मों में चुम्बन दृश्यों की नींव डालीं.
२. मेरा नाम जोकर में रूसी अभिनेत्री क..राम्बियांकिना के साथ राज कपूर का चुम्बन दृश्य.
३.१९८० के दशक की फिल्मों में तो मानों चुम्बन दृश्यों की बाढ़ सी आ गई हो.
४.शाही स्वागत के दौरान पद्मिनी कोल्हापुरे का राजकुमार चार्ल्स को चूमने के दृश्य ने भारतीय समाज में हाय तौबा मचा दी थी.
५.पाकिस्तानी हाई कमिश्नर असरफ जहाँगीर की पुत्री को बयोवृध वरिष्ट पत्रकार खुशवंत सिंह द्वारा पोती की हैसियत से चूमने के दृश्य ने पुरे भारतीय महाद्वीप में तूफ़ान मचा के रख दिया था.
६. शबाना आज़मी द्वारा नेल्सन मंडेला को आजादी का चुम्बन देने के दृश्य को मीडिया ने इस तरह से पेश किया कि इस ख़बर ने भारतीय जनमानस को काफी झकझोर कर रख दिया था.
७.करिश्मा कपूर तथा आमिर खान का फ़िल्म राजा हिन्दुस्तानी का चुम्बन दृश्य (१९९६)
८.मल्लिका शेरावत तथा इमरान हाशमी के सीरियल चुम्बन दृष्य (२००४)
९.मिका का राखी सावंत को चूमना.
१०. रिचर्ड गेरे का शिल्पा शेट्टी का दोस्ताना अंदाज में चूमना
११. किरण मजुमदार तथा वसुंधरा राजे का अप्रत्याशित चुमबन
निम्नलिखित मुद्दों/विषयों की आड़ में मीडिया बहुधा अप्रत्यक्ष तौर पर पाठकों को रिझाता रहा है:-
१ वात्स्यायन की कामसूत्र सम्बन्धी पुस्तक की प्राचीनता और साहित्यकता की विवेचना करके
२. औरतों की सेक्स सम्बन्धी भ्रांतियों को दर्शाता बहुचर्चित अंग्रेजी नाटक "वेजिना मोनोलोग" की समीक्षा की आड़ में.
३. नजदीकी रिश्तेदारियों में होने वाले लेंगिक सम्बन्ध की समस्यायों की चर्चा की आड़ लेकर.
४, चित्रकारी में नग्नता सम्बन्धी विषय पर चर्चा करके
५. किशोरावस्था एवं योंन परिवर्तन जैसे विषय पर प्रकाश डालकर
६. इन्टरनेट के दुरुपयोग विषय पर लिखकर
७.स्तनपान एवं कैंसर पर प्रकाश डालकर
८. सम लैंगिक संबंधों की आड़ में
९. समाज में फैलती वेश्यावृति
१०.विवाहोपरांत होने वाले संबंधों से सम्बंधित विषयों पर लेखन
११.गे-सम्बन्ध
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