Thursday, April 11, 2019

कुछ भी नहीं बदला इस चुनावी दौर में




राजनीति में कुछ भी नहीं बदला... बिलकुल भी नहीं ...यहाँ कोई भीमतों में भिन्नताका मुद्दा नहीं है...विचारों की लड़ाई नहीं है...आज भी वही है जो पहले था... अर्थातमेरा विरुद्ध (v/s) तुम्हारा नेतालड़ाई...सबने अपने अपने नेता तय कर रखे हैं...दूसरों के नेताओं के पक्ष में सकारात्मक बातें चुभती हैं और नकारात्मक बातें गुदगुदाती हैं....वहीँ अपने नेता के पक्ष में सकारात्मक बातें गौरवान्वित करती हैं और नकारात्मक बातें खून जलाती है...वही का वही मुद्दा है ...वही दृष्टिकोण है...अर्थात  सत्ताधारी नेता के पास मीडिया है और विपक्ष बिलबिला रहा है...ये बातें बहुत पुरानी नहीं है जब बहुगुणा, राजनारायण, जय प्रकाश नारायण, अटल बिहारी बाजपेयी, ज्योति बसु, चरण सिंह चिल्लाते थे- ‘इंदिरा-नेहरू ही हर सिनेमा घर में क्यों दिखाए जाते हैं....सरकारी मीडिया का दुरुपयोग हो रहा है:...बगैहरा बगैहरा...कुछ वर्ष पहले ही वी.पी सिंह, देवी लाल आदि कहते नजर आते थे...” ये दूरदर्शन है या राजीव दर्शनतब ये लोग तर्कवादी, बुद्धिजीवी नज़र आते थे....अरे भाई, सत्ता पक्ष भला क्यों अपने मीडिया तंत्र पर विरोधियों का गौरवगाण करेगा ? आज भी वो लोग बुद्धिजीवी और तर्कवादी नज़र आते हैं जो सत्ता धारी पर मीडिया हड़पने का आरोप लगाते हैं और अलग अलग एंगल से बौखलाहट जाहिर करते हैं....अपने अंदर झाँक कर देख लो कि ये हरगिज भी विचारों की लड़ाई नहीं है...सिर्फमेरा विरुद्ध तुम्हारा व्यक्तिके जाल में उलझकर खामख्वाह अपना खून जलाएं....नहीं तो ये तनाव केवल मानसिक पीड़ा देगा बल्कि सर दर्द और बदन दर्द की शिकायत भी पैदा करेगा....क्रिकेट और फ़ुटबाल के खेल में दो समूहों में बंटकर जैसे लोग अपनी हारती हुई टीम से कई दिनों के लिए मानसिक आघात से गुजरते हैं वहीँ खेलों में दिलचस्पी लेने वाले मुस्कारते तनावरहित नज़र आते हैं....अब ये चुनाव आपका है कि आपको किस खेमे के लिए मुफ्त की मुसीबत मोल लेनी है या तटस्थ दृष्टा भाव से अपने स्वास्थ्य की रक्षा करनी है...'ऐसा माहौल बना है मानों आएगा मोदी ही'... संभवतः इमरान खान को यह समझ में गया...इसलिए विरोध का स्वर नीचे हो गया "